Monday, 29 July 2019

भारतीय दर्शन और पश्चिमी दर्शन में अंतर

भारतीय दर्शन : भारतीय विचारधारा के अनुसार दर्शन का जन्म मानव के सांसारिक दुखों से मुक्त करने के लिए और सत्य का साक्षात्कार कराने के लिए हुआ हैI जब व्यक्ति को सत्य का बोध हो जाता है तब वह और अविनाशी में अंतर समझ लेता हैI जब से यह दुनिया शुरू हुई है तभी से मानव सिर्फ प्रकृति, ब्राह्मण , सूर्य, तारे केवल इन्ही को लेकर ही नहीं बल्कि ईश्वर को लेकर भी समस्या में पड़ा हुआ हैI उसने ईश्वर को जानने की भी जिज्ञासा नहीं  रखी हैI आज हम इतनी विकसित दुनिया में रह रहे हैं यह उसी जिज्ञासाओं का परिणाम है लेकिन जो हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि थे उन्हें इस सांसारिक सुख से संतुष्टि नहीं हुई वह एक असीम आनंद को प्राप्त करना चाहते थेI उन्होंने सत्य की खोज के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म बातो का गूढ़ से गूढ़ अध्ययन किया और सिर्फ बाहरी रूप से ही नहीं बल्कि आंतरिक रूप से भी और वह इसमें सफल भी हुए और फिर उन्हें परम सत्य का भी ज्ञान हुआI  उसी ज्ञान को उन्होंने दर्शन का नाम दिया और यही INDIAN PHILOSOPHY(भारतीय दर्शन) कहलाती हैI इसलिए आज भी देखने को  मिलता है कि भारत के दार्शनिक विज्ञान को केवल हासिल ही नहीं करना चाहते बल्कि उसको उपयोग में भी लाना चाहते हैंI उनकी अनुभूति को भी प्राप्त करना चाहते हैं जबकि पश्चिम के दार्शनिक बुद्धिमान और प्रज्ञावान बनना चाहते हैंI पश्चिम के दार्शनिक में किताबी ज्ञान और चिंतन के आधार पर ही बुद्धिमान बनना चाहते हैं लेकिन भारतीय दार्शनिक अंतः स्वअध्ययन से ही बुद्धिमान होना चाहते हैंI और इसी व्यवस्था को आगे की ओर ले जाना चाहते हैं।


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